Madhu varma

Add To collaction

लेखनी कहानी - आग के बीज भाग ४

आग के बीज भाग 4

अचानक नौजवान की आंखों के सामने चमक चौंधी, फिर चली गई, फिर एक चमक चौंधी, फिर चली गई, जिससे चारों ओर हल्की हल्की रोशनी हो गई। नौजवान तुरंत उठ खड़ा हुआ और चारों ओर नजर दौड़ते हुए रोशनी की जगह को ढूंढ़ने लगा।

उसने देखा की ‘स्वी मू’ नाम के इस पेड़ पर कई पक्षी अपने कड़े चोंच को पेड़ पर मार मार कर उस में पड़े कीट निकाल रही हैं, जब एक बार वे पेड़ पर चोंच मारते हैं तो पेड़ में से तेज चिंगारी चौंध उठती है। यह देख कर नौजवान के दिमाग में यह विचार आया कि कहीं आग के बीज इस पकार के पेड़ में छिपे हुए तो नहीं हैं ? यह सोच उसने तुरंत ‘स्वी मू’ के पेड़ पर से एक टहनी तोड़ी और उसे पेड़ पर रगड़ने लगा।

उसने देखा की ऐसा करने से शाखा से चिंगारी तो निकल रही है पर आग नहीं जल रही। लेकिन उस नौजवान ने हार नहीं मानी और अलग अलग पेड़ की शाखाएं ढूंढ़ कर पेड़ पर रगड़ना जारी रखा। अंत में उसकी कोशिश रंग लायी। पेड़ की शाखा से धुआँ निकला, फिर आग जल उठी।

इस सफलता की खुशी में नौजवान की आंखों में आंसू भर आए। अब वो अपने गांव जाने के लिए चल पड़ा। वह लोगों के लिए आग के ऐसे बीज लाया था, जो कभी खत्म नहीं होने वाले थे। और वो आग के बीज थे – लकड़ी को रगड़ने से आग निकालने का तरीका। तभी से लोगों को आग के बारे में जानकारी हुई और वो उनका लाभ लेने लगे। अब तो न उन्हें सर्दी सताती थी और न ही अँधेरे का डर। आग लाने वाले नौजवान की बुद्धिमता और बहादुरी का सम्मान करते हुए लोगों ने उसे अपना मुखिया चुना और उसे ‘स्वी रन’ यानी आग लाने वाला पुरूष कहते हुए सम्मानित भी किया।

   0
0 Comments